वो बचपन के दिन याद बहुत आते है ,
रह रह कर होटों पर गुदगुदाती हंसी छोड़ जाते है ,
वो teacher का डर और तमाशा चुटकी भर,
याद बहुत आता है ,
वो lunch time का wait करना और wait करते करते class मे ही सो जाना ,
उठने पर कान पकडे पाना,
और इस सब के बाद भी टूट टूट कर खाना खाना ,
याद बहुत आता है ,
आधी छुट्टी आधा काम पूरी छुट्टी पूरा काम , सब कहने भर की थी बाते,
अब तो बस ये जुमले बस याद ही कर पाते,
primary classes के वो बहाने सच मानो नहीं आसान थे बनाने,
सब risk का होता था खेल एक गलती और सब मतियामैल,
उन दिनों तो बस एक sunday हुआ करता था जो अपना सा लगता था,
monday को तो calender से मानो हटाने को मन मचलता था ,
न जाने कहा गये वो दिन यही सवाल आजकल रहता है आम,
सही कहते थे माँ पापा हमें नहीं करना पड़ता कोई काम,
आज हम college मे आ गये और सरकार की नज़र मे उम्र के नए प्रकार हो गये ,
पर माँ पापा की नज़र आज भी हमे वही दिन याद दिलाती है ,
मन मे नयी उमंग जलाती है ,
कुछ कर गुजरने का होसला दिलाती है ,
वरना इस भीड़ भरी राहों पर हम कब के खो गये होते,
अगर ये यादे और माँ पापा आप नहीं होते ,
दोस्तों का साथ तो बिन मांगे ही मिल जाता है ,
सच मानो ये दूसरा वो रिश्ता है जो अपना कहलाता है ,
फिर भी बचपन बचपन होता है ,
इश्वर की तरफ से इस दुनिया मे आने की खुशी मे मीठी सोगात होता है ,
आज जब इश्वर को धन्यवाद करते है,
तो वो बचपन के दीप फिर जल उठते है ,
और वो बचपन के दिन बहुत याद आते है |
:)
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